Tuesday, April 16, 2019

प्रकाश राजः इस देश में चुनाव धंधा बन चुका है

हमने हमेशा ये फ़िल्मी लाइन सुनी है कि कीचड़ को साफ़ करने के लिए कीचड़ में कूदना पड़ता है.
हिंदी, तमिल और कन्नड़ फिल्मों के जाने-माने अभिनेता प्रकाश राज असल दुनिया में ऐसा करने का दावा करते हैं. 'सिंघम' और 'दबंग 2' का विलेन असली दुनिया में हीरो की भूमिका निभाना चाहता है.
प्रकाश राज के अनुसार, "आज के सिस्टम में जो गन्दगी है, भ्रष्टाचार और नॉन-गवर्नमेंट है उसका मूल कारण चुनावी प्रक्रिया है."
उन्होंने इस 'भ्रष्ट सिस्टम' का हिस्सा बन कर चुनावी मैदान में प्रवेश किया है ताकि इसमें सुधार लाने में मदद की जाय.
वो बेंगलुरु सेंट्रल से एक निर्दलीय उमीदवार की हैसियत से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.
"इस देश में चुनाव एक धंधा बन चुका है", बीबीसी से एक ख़ास मुलाक़ात में वो इस 'भ्रष्ट' सिस्टम पर दबंग तरीके से प्रहार करते हैं.
वो कहते हैं, "किसी भी पार्टी का 15-20 प्रतिशत वोट पैसे से ही हासिल किया जाता है."
प्रकाश राज ने इसी सिस्टम से सवाल करने के लिए 'हैशटैग जस्ट आस्किंग' की मुहिम सोशल मीडिया पर शुरू की थी जिससे उन्हें एंटी-मोदी समझा जाने लगा.
लेकिन वो कहते हैं, "मैं नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ नहीं हूँ. वो मेरे चाचा थोड़े ही हैं. वो मेरे भी प्रधानमंत्री हैं. मैं सत्ता पर बैठी सरकार से सवाल कर रहा हूँ."
वो अपनी सभाओं में भी नौकरियों पर सवाल उठा रहे हैं, "नौकरियों, झूठे वादों, देश को बांटने वाली सियासत पर मैं सवाल कर रहा हूँ."
शायद इसीलिए उन्होंने अपना चुनाव चिन्ह सीटी रखा है. वो कहते हैं, "व्हिसल यानी व्हिसल ब्लोअर. मैं लोगों को भ्रष्ट सिस्टम से आगाह करता हूँ."
उनकी चुनावी मुहिम के दौरान जो नज़ारा सबसे प्रमुख तौर पर देखने को मिलता है वो है सभाओं में मौजूद लोगों का एक साथ सीटी बजाना.
बूढ़े, बच्चे, महिलायें सभी एक साथ सीटी बजा कर उनका स्वागत करते हैं.
लेकिन क्या सीटी की गूंजती आवाज़ मतदाताओं तक पहुँच रही है? सभा में मौजूद लोग ज़्यादातर ग़रीब हैं और 'सिस्टम' से दुखी हैं.
शकील यूनुस नामक एक युवा ने कहा कि उनकी बेरोज़गारी उन्हें प्रकाश राज के क़रीब लाई है.
वो कहते हैं, "उनकी आवाज़ में दम है." फलों की दुकान में खड़े कुछ ग्राहकों ने कहा कि प्रकाश शायद चुनाव जीत न सकें लेकिन उन्होंने जो मुद्दे उठाये हैं वो आम लोगों से जुड़े मुद्दे हैं.
प्रकाश राज ऐसे ही मुद्दे लोकसभा में उठाना चाहते हैं. और वो इस चुनावी प्रणाली को बदलना चाहते हैं जो "एक ब्रांडिंग बन चुका है, मार्केटिंग टूल बन चुका है, बांटने वाली सियासत बन चुका है, पैसे से वोट ख़रीदते हैं. वोट ग़रीब ही अधिक देते हैं, लेकिन वो ग़रीबों को ग़रीब ही रखते हैं."
लेकिन प्रकाश राज के चुनाव जीतने की संभावना कितनी है? उनके ख़िलाफ़ इस क्षेत्र से पिछले दो बार जीतने वाले उमीदवार हैं भारतीय जनता पार्टी के पीसी मोहन. उनके मुक़ाबले में हैं कांग्रेस के युवा नेता रिज़वान अरशद. यहाँ मुस्लिम वोटरों की संख्या मायने रखती है.
सियासी विश्लेषक और शहर में कई लोग ये समझते हैं कि प्रकाश राज सेक्युलर और नॉन-बीजेपी वोट काटेंगे जिससे रिज़वान अरशद को नुकसान होगा और पीसी मोहन लगातार तीसरी बार यहाँ से जीत कर हैट्रिक पूरी कर लेंगे.
लेकिन प्रकाश राज ने इस बात से इंकार किया कि वो कांग्रेस का वोट काट रहे हैं, "ये कौन कह रहा है? ये कांग्रेसी कह रहे हैं. पिछले दो बार वो यहाँ से हारे हैं. अगर वो जीतते तो आप कह सकते हैं मैं इस बार उनका वोट काट रहा हूँ."
लेकिन सेक्युलर ताकतें भी, जिसका वो नेतृत्व करने वाला नेता समझे जाते हैं, डरी हैं कि कहीं बीजेपी को इसका फ़ायदा न हो जाए.
क्या जाने-अनजाने मोदी-विरोधी कहे जाने वाले प्रकाश राज मोदी को फ़ायदा करा रहे हैं? इस पर वो कहते हैं, "क्या कांग्रेस सेक्युलर है? कांग्रेस और बीजेपी दोनों विभाजित करने वाली पार्टियां हैं. मैं किसी के ख़िलाफ़ नहीं हूँ."
वो आगे कहते हैं, "मैं सेक्युलर इंडिया की आवाज़ बन चुका हूँ तो मैं अप्रसिद्ध बनने के लिए भी तैयार हूँ". मैंने लोगों से संवाद शुरू किया है. हमें सियासी पार्टियों वाली राजनीति नहीं चाहिए, हमें लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं की ज़रूरत है."
प्रकाश प्रकाश राज बेंगलुरु में 1965 में पैदा हुए. उनका नाम प्रकाश राय था लेकिन फ़िल्म ने उन्हें प्रकाश राज का नाम दिया. वो कहते हैं कि स्थानीय लोगों की समस्याओं से वो पूरी तरह से वाक़िफ़ हैं.
उनका कहना था कि वो धर्म या सेकुलरिज्म के नाम पर वोट नहीं मांग रहे हैं. वो स्थानीय होने के नाते लोगों से मिल रहे हैं, सभी समाज के लोगों से.